मरहला
हज़ार बार जो गुज़रा है वाकया क्या है, मिरे सनम ये मिरी जाँ का मरहला क्या है हरेक दिलबर से आँख लड़ ही जाती है, ख़ुदा ख़ुदा ये मिरे दिल का मसअला क्या है नशा मिला न मिला यार दुपअट्टा तेरा, दिल-ए-सफ़ा के कने और आसरा क्या है अजीब ढंग से सताते हैं मुझको यूँ कहकर, तुम्ही कहो कि मिरा तुमसे वास्ता क्या है वफ़ा मिली न मिला आप सा सनम कोई, बताइये कि मुझे इश्क़ में मिला क्या है बुझा बुझा सा मैं रहता हूँ यार जन्नत में, किसी से पूछ कि लखनउ का रास्ता क्या है - पंडित आयुष्य चतुर्वेदी