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मरहला

  हज़ार बार जो गुज़रा है वाकया क्या है, मिरे सनम ये मिरी जाँ का मरहला क्या है हरेक दिलबर से आँख लड़ ही जाती है, ख़ुदा ख़ुदा ये मिरे दिल का मसअला क्या है नशा मिला न मिला यार दुपअट्टा तेरा, दिल-ए-सफ़ा के कने और आसरा क्या है अजीब ढंग से सताते हैं मुझको यूँ कहकर, तुम्ही कहो कि मिरा तुमसे वास्ता क्या है वफ़ा मिली न मिला आप सा सनम कोई, बताइये कि मुझे इश्क़ में मिला क्या है बुझा बुझा सा मैं रहता हूँ यार जन्नत में, किसी से पूछ कि लखनउ का रास्ता क्या है - पंडित आयुष्य चतुर्वेदी

सताते सताते

 सताते सताते क्यूँ रुक गये हो, निभाते निभाते वफ़ा थक गये हो हिजाबां हटावो कि देखे खुदा भी, जताते जताते हया थक गये हो पंडित आयुष्य चतुर्वेदी

Ya khuda

 या खुदा भौंरा बना हूँ गुलशन-ए-बेदाद का, आदतन साइल हुआ खूगर हुआ फ़रयाद का इस तरह का इश्क़ मुमकिन हो तो' मुझसे कर सनम, वस्ल का झगड़ा न हो सौदा न हो बेदाद का इस कदर देखा मुझे जब कत्ल कश बनते हुए, खून टपका आँख से दिल फट गया सय्याद का आ सके मुझ तक सदा अब तो रहा मुमकिन नहीं, शाद रहकर भी रहा नाशाद दिल नाशाद का शाद रहने दो मुझे नाशादगी के साथ तुम, खौफ़ बुलबुल का न हो नाला न हो सय्याद का कीजिये ऐसा करम कुछ याद रक्खा जाइगा, खौफ़ मिल्लत का न हो दिल खुश रहे नाशाद का -पंडित आयुष्य चतुर्वेदी

Ab tak

 हमारे दिल न तुम पूछो कि क्या क्या खो चुके अबतक, न जाने कौन सी महफ़िल जो' बाकी रो चुके अबतक मिरी आँखे सतातीं हैं कि उसको आँख भर देखूँ, कि अरमां जग चुके कितने कि कितने सो चुके अबतक दिल-ए-परदा न तू घबरा कि ये नाटक हुआ सारा, कि कितने जी चुके अबतक कि कितने सो चुके अबतक बड़ी देरी करी ज़ालिम कि काबे से निकलने में, ज़ियादा थम सका ना दिल बुतों के हो चुके अबतक न पूछा कीजिये 'क्या हाल है मेरे बिना तेरा', न जानूँ क्या रहा बाक़ी कि जी तो खो चुके अबतक मिरा मरना हुआ दौर-ए-समाँ आना हुआ चौबे, कि कितने हँस चुके अबतक कि कितने रो चुके अबतक - पंडित आयुष्य चतुर्वेदी